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Friday, 1 August 2025

"हाँ अर्जुन, तुम धोखा खा लेना। कभी भी किसी को धोखा मत देना। धोखा खाने वाला सँभल जाता है, लेकिन धोखा देने वाला एक दिन सब कुछ खो देता है।" गीता से जुड़ाव (भाव के स्तर पर): श्रीकृष्ण अर्जुन से बार-बार यह कहते हैं कि — "धर्म के मार्ग पर अडिग रहो, भले सामने अधर्म हो।" उदाहरण: "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" "तेरा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं।" यहाँ ‘धोखा न देना’ का भाव इस बात से जुड़ता है कि व्यक्ति को निष्कलंक, निस्वार्थ और सच्चा कर्म करना चाहिए। अधर्म और पाप करने वाले का अंत निश्चित है। "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत..." "जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ।" धोखा देना भी एक तरह का अधर्म है। गीता के अनुसार, अधर्मी चाहे जितनी देर तक बचे, अंत में उसका पतन होता है। नैतिक सन्देश: सच्चाई और विश्वास — यही इंसान की सबसे बड़ी पूँजी होती है। धोखा खाने वाला सीखता है, मजबूत होता है। धोखा देने वाला धीरे-धीरे अपने रिश्ते, शांति, और आत्मसम्मान को खो देता है। निष्कर्ष: तुम्हारी यह पंक्ति अगर गीता के भावों में जोड़ दी जाए, तो यह कह सकते हैं: "हे अर्जुन, सच्चाई की राह कठिन हो सकती है — उसमें धोखा भी मिलेगा — फिर भी तुम सच्चे रहना। कभी किसी को धोखा मत देना, क्योंकि सत्य ही अंत में विजयी होता है।" अगर तुम चाहो, तो मैं इस विचार को एक छोटे संवाद, कविता, या गीता शैली के उपदेश के रूप में रचकर भी दे सकता हूँ।

Raadhaa Rani

Radhika or Radha Rani Barsana (near Mathura, Uttar Pradesh, India) Vrishabhanu (father) and Kirtida (mother) Lord Krishna (divine lover and soul companion) Goddess Lakshmi (in many Vaishnav traditions) The Queen of Vrindavan, the supreme goddess, and the greatest devotee of Krishna